Bhagavad Gita Chapter 10 Verse 17 भगवद् गीता अध्याय 10 श्लोक 17 कथं विद्यामहं योगिंस्त्वां सदा परिचिन्तयन्। केषु केषु च भावेषु चिन्त्योऽसि भगवन्मया।।10.17।। हिंदी अनुवाद - स्वामी तेजोमयानंद ।।10.17।। हे योगेश्वर मैं किस प्रकार निरन्तर चिन्तन करता हुआ आपको जानूँ? और हे भगवन् आप किनकिन भावों में मेरे द्वारा चिन्तन करने योग्य हैं।। Brahma Vaishnava Sampradaya - Commentary