Bhagavad Gita Chapter 1 Verse 44 भगवद् गीता अध्याय 1 श्लोक 44 उत्सन्नकुलधर्माणां मनुष्याणां जनार्दन। नरकेऽनियतं वासो भवतीत्यनुशुश्रुम।।1.44।। हिंदी अनुवाद - स्वामी रामसुख दास जी ( भगवद् गीता 1.44) ।।1.44।।हे जनार्दन जिनके कुलधर्म नष्ट हो जाते हैं? उन मनुष्योंका बहुत कालतक नरकोंमें वापस होता है? ऐसा हम सुनते आये हैं। हिंदी अनुवाद - स्वामी तेजोमयानंद ।।1.44।।हे जनार्दन हमने सुना है कि जिनके यहां कुल धर्म नष्ट हो जाता है उन मनुष्यों का अनियत काल तक नरक में वास होता है। हिंदी टीका - स्वामी रामसुख दास जी  1.44।। व्याख्या    उत्सन्नकुलधर्माणाम् ৷৷. अनुशुश्रुम (टिप्पणी प0 30)      भगवान्ने मनुष्यको विवेक दिया है नया कर्म करनेका अधिकार दिया है। अतः यह कर्म करनेमें अथवा न करनेमें अच्छा करनेमें अथवा मन्दा करनेमें स्वतन्त्र है। इसलिये इसको सदा विवेकविचारपूर्वक कर्तव्यकर्म करने चाहिये। परन्तु मनुष्य सुखभोग आदिके लोभमें आकर अपने विवेकका निरादर कर देते हैं और रागद्वेषके वशीभूत हो जाते हैं जिससे उनके आचरण शास्त्र और कुलमर्यादाके विरुद्ध होने लगते हैं। परिणामस्वरूप इस लोकमें उनकी निन्दा अपमान तिरस्कार होता है और परलोकमें दुर्गति नरकोंकी प्राप्ति होती है। अपने पापोंके कारण उनको बहुत समयतक नरकोंका कष्ट भोगना पड़ता है। ऐसा हम परम्परासे बड़ेबूढ़े गुरुजनोंसे सुनते आये हैं। मनुष्याणाम्   पदमें कुलघाती और उनके कुलके सभी मनुष्योंका समावेश किया गया है अर्थात् कुलघातियोंके पहले जो हो चुके हैं उन (पितरों) का अपना और आगे होनेवाले(वंश) का समावेश किया गया है। सम्बन्ध   युद्धके होनेवाली अनर्थपरम्पराके वर्णनका खुद अर्जुनपर क्या असर पड़ा इसको आगेके श्लोकमें बताते हैं। हिंदी टीका - स्वामी चिन्मयानंद जी ।।1.44।। इसके उपरान्त भी भगवान् कुछ नहीं बोले। अब अर्जुन की स्थिति ऐसी हो गयी थी कि वह न तो चुप रह सकता था और न उसको नये तर्क ही सूझ रहे थे। परन्तु भगवान् के मौन का प्रभाव भी अनूठा ही था। इस श्लोक में अर्जुन पारम्परिक कथन ही उद्धृत करता है।हिन्दुओं के लिये धर्म ही संस्कृति है। इसलिये कुलधर्म के महत्व पर पर्याप्त प्रकाश डाला जा चुका है। इसी कारण अर्जुन यहाँ एक बार फिर कुलधर्म नाश के दुष्परिणामों की ओर ध्यान आकर्षित करता है।