Bhagavad Gita Chapter 1 Verse 40 भगवद् गीता अध्याय 1 श्लोक 40 कुलक्षये प्रणश्यन्ति कुलधर्माः सनातनाः। धर्मे नष्टे कुलं कृत्स्नमधर्मोऽभिभवत्युत।।1.40।। हिंदी अनुवाद - स्वामी रामसुख दास जी ( भगवद् गीता 1.40) ।।1.40।।कुलका क्षय होनेपर सदासे चलते आये कुलधर्म नष्ट हो जाते हैं और धर्मका नाश होनेपर (बचे हुए) सम्पूर्ण कुलको अधर्म दबा लेता है। हिंदी अनुवाद - स्वामी तेजोमयानंद ।।1.40।।कुल के नष्ट होने से सनातन धर्म नष्ट हो जाते हैं। धर्म नष्ट होने पर सम्पूर्ण कुल को अधर्म (पाप) दबा लेता है। हिंदी टीका - स्वामी रामसुख दास जी ।।1.40।। व्याख्या    कुलक्षये प्रणश्यन्ति कुलधर्माः सनातनाः   जब युद्ध होता है तब उसमें कुल(वंश) का क्षय (ह्रास) होता है। जबसे कुल आरम्भ हुआ है तभीसे कुलके धर्म अर्थात् कुलकी पवित्र परम्पराएँ पवित्र रीतियाँ मर्यादाएँ भी परम्परासे चलती आयी हैं। परन्तु जब कुलका क्षय हो जाता है तब सदासे कुलके साथ रहनेवाले धर्म भी नष्ट हो जाते हैं अर्थात् जन्मके समय द्वजातिसंस्कारके समय विवाहके समय मृत्युके समय और मृत्युके बाद किये जानेवाले जोजो शास्त्रीय पवित्र रीतिरिवाज हैं जो कि जीवित और मृतात्मा मनुष्योंके लिये इस लोकमें और परलोकमें कल्याण करनेवाले हैं वे नष्ट हो जाते हैं। कारण कि जब कुलका ही नाश हो जाता है तब कुलके आश्रित रहनेवाले धर्म किसके आश्रित रहेंगे  धर्मे नष्टे कुलं कृत्स्नमधर्मोऽभिभवत्युत   जब कुलकी पवित्र मर्यादाएँ पवित्र आचरण नष्ट हो जाते हैं तब धर्मका पालन न करना और धर्मसे विपरीत काम करना अर्थात् करनेलायक कामको न करना और न करनेलायक कामको करनारूप अधर्म सम्पूर्ण कुलको दबा लेता है अर्थात् सम्पूर्ण कुलमें अधर्म छा जाता है।अब यहाँ यह शङ्का होती है कि जब कुल नष्ट हो जायगा कुल रहेगा ही नहीं तब अधर्म किसको दबायेगा इसका उत्तर यह है कि जो लड़ाईके योग्य पुरुष हैं वे तो युद्धमें मारे जाते हैं किन्तु जो लड़ाईके योग्य नहीं हैं ऐसे जो बालक और स्त्रियाँ पीछे बच जाती हैं उनको अधर्म दबा लेता है। कारण कि जब युद्धमें शस्त्र शास्त्र व्यवहार आदिके जानकार और अनुभवी पुरुष मर जाते हैं तब पीछे बचे लोगोंको अच्छी शिक्षा देनेवाले उनपर शासन करनेवाले नहीं रहते। इससे मर्यादाका व्यवहारका ज्ञान न होनेसे वे मनमाना आचरण करने लग जाते हैं अर्थात् वे करनेलायक कामको तो करते नहीं और न करनेलायक कामको करने लग जाते हैं। इसलिये उनमें अधर्म फैल जाता है। हिंदी टीका - स्वामी चिन्मयानंद जी ।।1.40।। जिस प्रकार कोई कथावाचक हर बार पुरानी कथा सुनाते हुए कुछ नई बातें उसमें जोड़ता जाता है इसी प्रकार अर्जुन की सर्जक बुद्धि अपनी गलत धारणा को पुष्ट करने के लिए नएनए तर्क निकाल रही है। वह जैसे ही एक तर्क समाप्त करता है वैसे ही उसको एक और नया तर्क सूझता है जिसकी आड़ में वह अपनी दुर्बलता को छिपाना चाहता है। अब उसका तर्क यह है कि युद्ध में अनेक परिवारों के नष्ट हो जाने पर सब प्रकार की सामाजिक एवं धार्मिक परम्परायें समाप्त हो जायेंगी और शीघ्र ही सब ओर अधर्म फैल जायेगा।सभ्यता और संस्कृति के क्षेत्र में नएनए प्रयोग करने में हमारे पूर्वजों की सदैव विशेष रुचि रही है। वे जानते थे कि राष्ट्र की संस्कृति की इकाई कुल की संस्कृति होती है। इसलिये यहाँ अर्जुन विशेष रूप से कुल धर्म के नाश का उल्लेख करता है क्योंकि उसके नाश के गम्भीर परिणाम हो सकते हैं।