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Bhagavad Gita Chapter 1 Verse 35

भगवद् गीता अध्याय 1 श्लोक 35

एतान्न हन्तुमिच्छामि घ्नतोऽपि मधुसूदन।
अपि त्रैलोक्यराज्यस्य हेतोः किं नु महीकृते।।1.35।।

हिंदी अनुवाद - स्वामी रामसुख दास जी ( भगवद् गीता 1.35)

।।1.34 1.35।।(टिप्पणी प0 24.1) आचार्य? पिता? पुत्र और उसी प्रकार पितामह? मामा? ससुर? पौत्र? साले तथा अन्य जितने भी सम्बन्धी हैं? मुझपर प्रहार करनेपर भी मैं इनको मारना नहीं चाहता? और हे मधुसूदन मुझे त्रिलोकीका राज्य मिलता हो? तो भी मैं इनको मारना नहीं चाहता? फिर पृथ्वीके लिये तो मैं इनको मारूँ ही क्या

हिंदी अनुवाद - स्वामी तेजोमयानंद

।।1.35।।हे मधुसूदन इनके मुझे मारने पर अथवा त्रैलोक्य के राज्य के लिये भी मैं इनको मारना नहीं चाहता फिर पृथ्वी के लिए कहना ही क्या है।